10TH CHEMISTRY NOTES

Natural Resource Management (प्राकृतिक संसाधन का प्रबंधन)Career Crafters

इस पोस्ट में हम Class 10th Natural Resource Management (प्राकृतिक संसाधन का प्रबंधन) के बारे में जानेंगे। इस पोस्ट में कक्षा 10 की सभी महत्वपूर्ण तथ्यों को शामिल किया गया है। 

अनेक राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय नियम व कानून पर्यावरण को प्रदुषण से बचाने के लिए बने है। अनेक
राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संस्थान भी हमारे पर्यावरण को सुरक्षित रखने में कार्यरत है।

जैसे :-क्योटो प्रोटोकॉल तथा उत्सर्जन संबधी मानदंड

क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol)

:-1997 में जापान के क्योटो शहर में भूमंडलीय ताप वृद्धि को रोकने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में विश्व के 141 देशों ने भाग लिया। इस क्योटो प्रोटोकॉल के अनुसार सभी औद्योगिक देशों को 2008 से 2012 तक के पांच वर्षो की अवधि में 6 प्रमुख ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के स्तर में 1990 के स्तर से कमी लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

हमारे देश में ग्रीनहाउस गैसों का सबसे अधिक उत्सर्जन जीवाश्म ईंधन कोयला ,पेट्रोल ,डीजल आदि के उपयोग से होता है।Natural resource management PDF Download

लकड़ी और उपले जलाने से भी कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।

उत्सर्जन संबंधी मानदंड (Emission Standard)

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वाहनों को वायु प्रदुषण के प्रमुख स्रोतों में एक बताया। इस कारण 1989 में केन्द्रीय मोटर वाहन अधिनियम को संशोधित किया गया।

1991 में पहली बार वाहन निर्माताओं के लिए उत्सर्जन संबंधी मानदंड जैस:-युरो-लागु किया गया। इन मानदंडों को 2000 में फिर संशोधित कर युरो-II लागु किया गया। जिससे दिल्ली में ईंधन के दहन से निकले गैसों की मात्रा में कमी आयी है तथा वायु की गुणवत्ता बढ़ी है।

गंगा कार्यान्वयन योजना (Ganga Implementation Plan)

इस योजना की घोषणा 1986 में हुई थी,जिसके लिए 300 करोड़ रुपयों से भी अधिक का प्रावधान था और
ऋषिकेश से कोलकाता तक गंगा नदी को स्वच्छ बनाने की योजना थी।

इस योजना के अंतर्गत उत्तर प्रदेश ,बिहार तथा पश्चिम बंगाल की लघु योजनाएँ सम्मलित हुई।

पीने के जल में प्रति 100ml जल में कॉलिफॉर्म की संख्या शून्य और नहाने तथा सिंचाई के जल में 200 से कम होनी चाहिए।

भारत में जनता के लिए जल आपूर्ति में 500 कॉलिफॉर्म प्रति 100ml जल में होने चाहिए।

कॉलिफॉर्म जीवाणुओं की वृद्धि से पेट और आँत के रोग होते है।

कमी ,पुनचार्लन,पुनरुपयोग (Reduce,Recycle,reuse)

*कमी(Reduce):-इसका अभिप्राय हमारे द्वारा किसी वस्तु का कम-से-कम उपयोग किए जाने से है।

*पुनचार्लन(Recycle):-किसी वस्तु का मौजूदा रूप में उपयोग संभव नहीं है तो उसके पुनचार्लन के संबंध में विचार करें।

जैसे:-कागज ,कांच ,प्लास्टिक आदि

*पुनरुपयोग(Reuse):-यह पुनर्चालन से अच्छा तरीका है क्योंकि इसमें ऊर्जा नहीं लगती है।

जैसे:-पुराने लिफाफे को फेंकने के बदले उलटकर फिर से इस्तेमाल किया जा सकता है।

विभिन्न संसाधनों का प्रबंधन

संसाधन प्रबंधन का अर्थ होता है संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करना। ताकि उसकी गुणवत्ता तथा उपलब्धता बनी रहे तथा विकास कार्य भी न रुके और पर्यावरण भी संतुलित बना रहे।

वन एवं वन्य जीव

 प्राकृतिक संसाधनों में वन का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है।

वन का महत्व

1. वन पर्यावरण की सुरक्षा के साथ-साथ मनुष्यों की मूल आवश्यकताओं-आवास निर्माण सामग्री ,ईंधन ,जल तथा भोजन आदि की आपूर्ति करता है।

2. वनों से पशुओं के लिए चारा उपलब्ध होता है।

3. वनों में पेड़ों से गिरनेवाले पत्ते मिट्टी में सड़कर ह्यूमस उत्पन्न करते है जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है।

4. वनों से हमें दुर्लभ औषधीय पौधे ,रेजिन ,रबर ,तेल आदि मिलते है।

5. वनों के हास्य से कई प्रकार की जैव प्रजातियाँ लुप्त हो जाती है।

6. वनों द्वारा वातावरण के ताप में कमी आती है।

7. वनों द्वारा वर्षा की मात्रा में वृद्धि होती है।

Principles of natural resource management

*वन क्षेत्र में कमी के प्रमुख कारण :-वन क्षेत्र में कमी के प्रमुख कारण निम्न है।
जैसे:-जनसंख्या में वृद्धि
 ,शहरीकरण ,औद्योगीकरण तथा लकड़ी की मांग वृद्धि हुई है,जिससे वनों की मनमाने ढंग से कटाई हो रही है। खनन कार्य और बांधो के निर्माण से वनों को नुकसान पहुँचाया जा रहा है।

वन प्रबंधन के प्रयास

भारत सरकार ने राष्ट्रीय वन निति बनाकर वनसंरक्षण के निम्नलिखित प्रयास किये है।

1. बचे हुए वन क्षेत्रो का संरक्षण

2. वनों की कटाई कको विवेकपूर्ण बनाना।

3. बंजर तथा परती भूमि पर सघन वृक्षारोपण के कार्यक्रमों का संचालन। 

4. बांधो के तटबंधों तथा आसपास के क्षेत्र को वनाच्छादित बनाना।

5. स्वंयसेवी संस्थाओं को प्रोत्साहन आदि

चिपको आंदोलन (Chipko Movement)

1970 के दशक में उत्तराखंड के पहाड़ों पर स्थित रेनी ग्राम में इमारती लकड़ी के ठेकेदारों के
हाथों वनों
  विनाश रोकने के लिए स्थानीय स्त्रियों ने पेड़ों से चिपककर एक जन आंदोलन किया था।                                           राजस्थान  खेजरी ग्राम में पेड़ो से चिपककर स्त्रियों के जान देने की घटना की याद में लोगों ने इस आंदोलन को चिपको आंदोलन‘ नाम दिया।Natural resources Class 10 PDF

इस आंदोलन का समर्थन सुन्दर लाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट जैसे लोगों ने किया।

वन्यजीव

वनों की सघनता घटने तथा उनके क्षेत्रफल के कम होने से वन्यजीवों का जीवन संकट में है।

*भारत में वन्यजीवों  प्रबंधन :-देश में पशु-पक्षियों की सुरक्षा हेतु कई वन विहार ,राष्ट्रीय उद्यान तथा अन्य प्राकृतिक क्षेत्रों की स्थापना की गयी है।

भारत में 1970 में वन्यजीव एवं प्रकृति संरक्षण वर्ष मनाया गया था।

हमारे देश के प्रमुख वन्यप्राणी-शेर ,बाघ ,हाथी ,सफेद शेर ,घड़ियाल ,मगरमच्छ ,काला मृग ,नीलगिरि लंगूर आदि है।

हिमाचल प्रदेश में कुल्ह(Kulhs)

चार सौ वर्ष पहले हिमाचल प्रदेश के कुछ पहाड़ी भागों में सिंचाई के लिए एक स्थानीय व्यवस्था की गई थी,जिसे कुल्ह के नाम से जाना जाता है।

पहाड़ी के जल स्रोतों को लोगों द्वारा बनाए गए नालों से जोड़कर पहाड़ी के नीचे स्थित कई गावों में सिंचाई के लिए ले जाया जाता था। इस जल के न्यायपूर्ण वितरण के लिए लोगों में एक समझौता हुआ
करता था जिसके अनुसार कुल्ह का जल सबसे पहले दूर वाले गावं को प्राप्त हो सके
 ,बाद में नजदीक वाले गावं को। 

*बाँध(Dams):-बाँध जल की उपलब्धता को बनाये रखता है। जिसका उपयोग निम्न क्रियाकलापों में किया जाता है।

जैसे :-सिंचाई ,बिजली निर्माण ,पेयजल की आपूर्ति

हमारे देश में कई नदी घाटी परियोजना देश के विकास में योगदान दे रहे है।

1. टिहरी बाँध परियोजना :-टिहरी बाँध का निर्माण उत्तरांचल के टिहरी जिले में भागीरथी तथा भीलांगना नदियों के संगम के निचे गंगा नदी पर किया गया है।

टिहरी बाँध निर्माण का उद्देश्य

i. बिजली उत्पादन

ii. दिल्ली को जल की आपूर्ति

iii. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 2 लाख 70 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई

2. सरदार सरोवर बाँध परियोजना :-सरदार सरोवर बाँध ,गुजरात प्रान्त के नर्मदा नदी पर बनाया गया है। जिसका उद्देश्य सिंचाई ,बिजली,पेयजल आपूर्ति था।

इस परियोजना से गुजरात ,मध्यप्रदेश ,महाराष्ट्र तथा राजस्थान को लाभ मिल रहा है।

इस परियोजना को मेधा पाटकर ,मेनका गाँधी आदि का विरोध का सामना करना पड़ा था।

*जल संचयन(Water Harvesting):-वर्षाजल के समान्य उपयोग के लिए,भूमिगत जल-स्तर को सामान्य बनाये रखने के लिए तथा जल के संरक्षण के लिए किए जाने वाले संग्रहण को जल संचयन कहते है।

गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोत

1. सौर ऊर्जा :-सूर्य ऊर्जा का निरंतर स्रोत है। सूर्य की ऊष्मा एवं प्रकाश से प्रचुर मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है।

सौर ऊर्जा का उपयोग कई कार्यो में किया जाता है।

i. सौर कुकर में खाने को पकाने में

ii. सौर जल उष्मक से जल को गर्म करने में

iii. सौर शक्ति संयत्र से विधुत ऊर्जा का उत्पादन करने में

2. पवन ऊर्जा :-पवन ऊर्जा का उपयोग कई कार्यो में किया जाता है।

i. अनाज की पिसाई के लिए पवन चक्की

ii. विधुत उत्पन्न करने के लिए पवन चक्की

*बायोगैस(Biogas):-बायोगैस पशुओं के मलमूत्र ,अन्य व्यर्थ पदार्थ,घरेलु कूड़े-कचड़े जैसे व्यर्थ पदार्थों से पैदा की जाती है।

यह गैसीय मिश्रण है जिसमें मेथेन ,कार्बन डाइऑक्साइड ,हाइड्रोजन सल्फाइड तथा जलवाष्प मिली होती है।

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