10TH BIOLOGY NOTES

10th Transportation Notes in hindi (परिवहन)

ह नोट्स 10th Transportation Notes के विद्यार्थियों के लिए बनया गया है। इस नोट्स में हम परिवहन के बारे में जानेंगे। इस नोट्स  10th Transportation Notes in hindi  को सभी Topic को ध्यान में रखकर बनाया गया है। बिहार बोर्ड परिवहन नोट्स

*परिवहन(Transportation) किसे कहते है ?

 :- परिवहन वैसी प्रक्रिया है जिसमे पदार्थो को उसके मूल स्त्रोतों से प्राप्त कर शरीर के विभिन्न कोशिकाओं तक पहुँचाना तथा  अनुप्रयोग वह हानिकारक पदार्थो को वहाँ से निकलकर उसके गन्तव्य स्थान अर्थात मल द्वारा तक पहुँचाने की प्रक्रिया को परिवहन कहते है।
*पेड़-पौधे में परिवहन :-पेड़ – पौधे में परिवहन की प्रक्रिया सबहनी उत्तक की सहायता से होता है।
इसके दो भाग है।
(i) जाइलम
(ii) फ्लोएम
(i) जाइलम :- जो पेड़ – पौधे पादपीय उत्तक मिट्टी से पानी और खनिजों को पत्तों तक पहुँचता है उसे जाइलम कहते है।
(ii) फ्लोएम :- जो पादपीय उत्तक से बनें भोजन को पौधे के अन्य भागो तक पहुँचता है उसे फ्लोएम कहते है।

जाइलम और फ्लोएम में अंतर(Difference between Xylem and Phloem)

(i) जाइलम एक ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है काठ या काष्ठ।
(ii)जाइलम की कोशिका मृत होती है।
(iii) जाइलम जड़ में पाया जाता है।
(iv) जाइलम जड़ के माधयम से जल एवं खनिज लवण को नीचे से ऊपर की ओर परिवहन करती है।
फ्लोएम :-
(i) फ्लोएम एक ग्रीक भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है छाल।
(ii) फ्लोएम की कोशिका जीवित होती है।
(iii) फ्लोएम पत्ते में पाया जाता है।
(iv) फ्लोएम पत्ते में तैयार भोज्य पदार्थ को ऊपर से नीचे की ओर तथा आवश्यकता अनुसार नीचे से ऊपर की परिवहन करती है।

पौधों में खाद्य पदार्थों के परिवहन की क्रियाविधि (Mechanism of transportation of food in plants)

⇨पौधों में खाद्य पदार्थों के परिवहन की क्रियाविधि दो तरह से होती है।
(i) स्थानांतरण(Translacation)
(ii) वाष्पोत्सर्जन(transpiration)
(i) स्थानांतरण :- पौधे में एक भाग से दूसरे भाग में खाद्य पदार्थोको जलीय घोल के रूप में आर-जाने की प्रक्रिया को स्थानांतरण कहते है।
(ii) वाष्पोत्सर्जन :- पौधे के वायवीय भागों से जल के अणुओं का रंध्रों के द्वारा वाष्प के रूप में बाहर निकलने की प्रक्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहते है।
वाष्पोत्सर्जन की क्रिया मुख्यत: दो बातों पर निर्भर करती हैं।
(i) तापमान
(ii) क्षेत्रफल
वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया सभी पौधे में समान रूप से नहीं है।
जैसे :- एक मक्का का पौधा, एक दिन में 3 – 4 लीटर जल वायुमंडल में छोड़ता है। जबकि एक सेब का पौधा 10 – 20 लीटर जल वायुमंडल में छोड़ता है।

वाष्पोत्सर्जन का महत्त्व (importance of transpiration)

(i) वाष्पोत्सर्जन के कारणही पौधों के मूल रोमसे शीर्षस्य छोटी तक एक जल की निश्चित धरा अविरल बनी रहती है। 
(ii) यह पौधों के मूल रोमो द्वारा खनिज लवणों के अवशोषण एवं जड़ से पतियों तक उनके परिवहन में सहायक होती है।
(iii) यह पौधे में तापक्रम संतुलन बनाये रखने में महत्त्व पूर्ण भूमिका अदा करता है। 10th Transportation Notes in hindi
(iv) दिन में रंध्रों के खुले रहने पर वाष्पोत्सर्जन द्वारा जाइलम में जल की गति के लिए मुख्य प्रेरक बल प्रदान करता है।
Note :- पेड़ – पौधो को 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। जिसमे से 14 पोषक तत्व को मृदा से प्राप्त करता है जबकि 2 वायुमंडल से प्राप्त करता है
 Class 10th Transportation Notes in hindi (परिवहन)
* जंतुओं में परिवहन :- जंतुओं में परिवहन की क्रिया तीन अव्यवों की सहायता से होती है।
(i) रक्तBlood
(ii) प्लाज्माPlasma
(iii) लसिकाLymphatic
(i) रक्त:- रक्त हल्का लालपेन लिए हुए गाढ़ा, क्षारीय, नमकीन, द्रव्य है। इसका ph मान 7.4 होता है इसका रंग लाल हीमोग्लोबिन (Hoemoglobin) के कारण होता है और यह तरल संयोगी उत्तक के बने होते है।
रक्त के तीन कण होते है। 
1. लाल रक्त कनिका(R.B.C.)
2. श्वेत रक्त कनिका(W.B.C.)
3. रक्त बिंबानु या पट्टिकाणु (B.P.)

1. लाल रक्त कनिका(R.B.C.)

:- इसमें केन्द्रक नहीं पाया जाता है ( स्तनधारियों में जो R.B.C. पाया जाता है,उसमे केन्द्रक नहीं पाया जाता है लेकिन अपवाद में दो ऐसे स्तनधारी है जिसके रक्त में केन्द्रक पाया जाता है वो है ऊँट और लामा )
➤इसका आकार 7.2 uहोता है।
*इसका जन्म अस्यिमज्जा में होता है लेकिन भ्रूण अवस्था में इसका जन्म यकृत में होता है।
➤इसका जीवन काल 20 – 120 दिन तक होता है।
➤इसकी मृत्यु यकृत में हो जाती है।
➤इसकी संख्या पुरुषों में 50 लाख तथा महिलाओं में 45 लाख प्रति घन मिलीलीटर होती है।
➤ R.B.C. का क्रब प्लीहा को कहा जाता है।
➤Blood Bank प्लीहा को कहा जाता है।
➤Blood Bank में रक्त को द्रव्य सोडियम नाइट्रेट (NaNo3) में 40. F पर रखा जाता है।
➤शाम के सोते समय R.B.C. 5% घट जाता है लेकिन 4200 m की ऊँचाई पर सोने से R.B.C. 30% बढ़
जाता है।
➤इसका सबसे प्रमुख कार्य यह है कि ऑक्सीजन को ढोकर यह विभिन्न कोशिकाओं तक ले जाता है।

2.श्वेत रक्त कनिका(W.B.C.)

➤ इसमें केन्द्रक पाया जाता है।
➤ इसका कोई निश्चित आकृत नहीं होती है। अर्थात ये अमीबा समान होते है।
इसका जन्म अस्यिमज्जा में होता है।
➤इसका जीवन काल 1 – 4 दिन तक होता है।
➤इसकी मृत्यु रक्त में ही हो जाती है।
➤इसकी संख्या 8 हजार से 10 हजार प्रति घन मिलीमीटर होती है।
➤R.B.C. तथा W.B.C. का अनुपात 600:1 का अनुपात होता है।
* कार्य :- 
(i) यह प्रतिरक्षा तंत्र का कार्य करता है, अर्थात यह रोगों से रक्षा प्रदान करता है।
(ii) यह शरीर के अंदर टूटे – फूटे कोशिकाओं को भक्षण करता है।

3. रक्त बिंबानु या पट्टिकाणु(B.P.)

इसमें केन्द्रक नहीं पाया जाता है।
➤इसका जन्म अस्यिमज्जा में होता है।
➤इसका जीवन काल 3 से 5 दिन तक होता है।
➤इसकी मृत्यु यकृत में ही हो जाती है।
➤इसकी संख्या 250 लाख से 3 लाख प्रति घन मिलीमीटर होती है
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* कार्य :- 
(i) यह रक्त को थक्का बनने में मदद करता है।

* रक्त सम्बंधित अन्य तथ्य 

(i) व्यक्ति में रक्त उसके भार का 7% पाया जाता है।
(ii) व्यक्ति में औसतन रक्त 5 – 6 लीटर पाया जाता है।
(iii) रक्त में लोहा के कमी से एनीमिया रोग होता है जबकि लोहा की अधिकता से लौहमयता रोग होता है।
(iv) हीमोग्लोबिन में हीमौटिन नामक लौह पदार्थ पाया जाता है।
(v) रक्त दान में व्यक्ति कुल रक्त का 10% रक्त ही दान करता है।
(vi) रक्त के थक्का बनने में विटामिन K मदद करता है।
(vii) रक्त के थक्का में फेरिक क्लोराइड (Fecl3 ) का प्रयोग किया जाता है।
(viii) रक्त कणिकाएँ हिमोसाइटोमीटर से ज्ञात किया जाता है।
(ix) सबसे बड़ा W.B.C. कण मोनोसाइट है।
(x) सबसे छोटा W.B.C. ल्यूकोसाइट है।
(xi) रक्त के थक्का बनने में 2-5 का समय लगता है
(xii) रक्त का एक परिसंचरण पूरा करने में 23 सेकंड कालगता है।
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* प्लाज्मा (Plasma)

:- प्लाज्मा हल्का पीलेपन लिए हुए गाढ़ा चिपचिपा द्रव्य है।इसका रंग पीला विलिरुवीन के कारण होता है।
प्लाज्मा में दो प्रकार के प्रोटीन पाये जाते है।
(i) हिपैरिन :- यह शरीर के अंदर रक्त को जमने से रोकता है।
(ii) फाइब्रिनिजोन :- यह शरीर के बाहर रक्त के थक्का जमने में मदद करता है।
* प्लाज्मा में अन्य पदार्थ :-
(i) जल:- 90%
(ii) प्रोटीन:-7%
(iii) अकार्बनिक:-0.9%
(iv) ग्लूकोज:-0.18%
(v) वसा:-0.5%
➤ रक्त में प्लाज्मा 50 – 55% पाया जाता है।
➤जब प्लाज्मा में से फिब्रिन नामक पदार्थनिकालजाये तो उसके शेष भाग को सिरम कहते है।
➤लसीका (Lymph) :- लसीका एक प्रकार का वर्णहीन द्रव्य है, जो उत्तको उत्तको के बीच में स्थित होता है। इसका बहाव ही दिशा में उत्तको से हृदय की ओर होता है। इसमें श्वेत रक्त कणिकाएँ पायी जाती है।
* कार्य :-
(i) यह प्रतिरक्षा तंत्र का कार्य करता है।
(ii) यह भी टूटे – फूटे एवं नष्ट कोशिकाओं को भक्षण करता है।
(iii) यह घाव में हुए गढ़ों व जख्मों को भरने में मदद करता है।
Note :- जब लसीका अनियंत्रति रूप से विधि कर गुछा या जाल बनाता है तो कैंसर नामक बीमारी होती है।
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धमनी और शिरा में अन्तर (difference between artery and vein)

* धमनी :-
 (i) धमनी शुद्ध रक्त को हृदय से लेकर शरीर के विभिन्न कोशिकाओंपहुँचता है अर्थात यह ऑक्सीजनित रक्त को ढोता है।
(ii) धमनी की दीवारे मोटी लचीली एवं कपाटहीन होती है।
(iii) धमनी की दीवारे लाल रंग की होती है।
(iv) धमनी से रक्त निकलने सेधमनी की दीवारे नहीं पिचकती है।
(v) धमनी अधिक गहरा में होता है।
(vi) अपवाद में पल्मोनरी एक ऐसा धमनी है। जिसे अशुद्ध रक्त को शरीर के विभिन्न कोशिकाओं से हृदय तक पहुँचाता है।
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* शिरा :-
(i) शिरा अशुद्ध रक्त को शरीर के विभिन्न कोशिकाओं से लेकर हृदय पहुँचाता है अर्थात यह विऑक्सीजनित रक्त को ढोता है।
(ii) शिरा की दीवारे पतली, कठोर व कपाट रहता है।
(iii) शिरा की दीवारे नीला रंग की होती है।
(iv) शिरा से रक्त निकलने से शिरा की दीदारे पिचक जाती है।
(v) शिरा कम गहरा में होता है।
(vi) अपवाद में पल्मोनरी एक ऐसा शिरा है।जिससे शुद्ध रक्त को हृदय से शरीर के विभिन्न कोशिकाओं तक पहुँचाता है।

हृदय(Heart)

:- मानव का हृदय वक्षीय गुहा में दोनों फेफड़ो में मध्य में पाया जाता है। इसके चारों ओर एक झिल्ली पाई जाती है। जिसे पेरिकॉडियल (Pericordial Membrone) कहते है। इसमें Pericordial द्रव्य भरा रहता है जो इसे बाहरी अधातो से बचाता है।मनुष्य के हृदय में ऊपर वाले दो कोष्ट को आलिंद तथा नीचे वाले दो कोष्ट को निलय कहा जाता है। दायाँ आलिंद महाशिरा से रुधिर प्राप्त करता है जबकि बायाँ आलिंद
फुफ्फुसिय शिरा से रक्त प्राप्त करता है। आलिंद से निलय में रुधिर छिन्द्र द्वारा पहुँचाता है जिसपर कपाट होते है। दायाँ आलिंद एवं दायाँ निलय के बीच त्रिदलीय कपाट तथा बायाँ आलिंद एवंबायाँ निलय के बीच द्विदलीय कपाट होते है। ये कपाट रुधिर को विपरीत दिशा में जाने से रोकता है।
*रक्त दाब या रक्त चाप :- महाधमनी एवं उनकी मुख्य शाखाओं में रक्त प्रवाह को दबाव रक्त चाप कहलाता है।
➤सामान्य मनुष्य का रक्त चाप 120/80 mmHg होता है।
जहॉ,120=सिस्ट्रोलिक
80=डाईसिस्ट्रोलिक
➤रक्त चापस्फिग्मोमैनोमीटर से मापा जाता है।
➤E.C.G. का पूरा नाम :- इलेक्ट्रोकार्डियो ग्राफ/ग्राम (Electrocardiogram)
➤SA. Node का पूरा नाम :- साइनुऑरीकूलर नोड।
➤पेस मेकर से हृदय की गति नियंत्रित की जाती है। 
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