10th Hindi Chapter 15 Question Answer
Class 10th Hindi Chapter 15 Question Answer,10th Hindi Question Answer, अति सूधो सनेह को मारग है Question Answer
1.कवि प्रेममार्ग को अति सूधों क्यों कहता है? इस मार्ग की विशेषता क्या है ?
उत्तर : क्रवि प्रेम की भावना को अमृत के समान पवित्र एवं मधुर बताए हैं। ये कहते हैं कि प्रेम मार्ग पर चलना सरल है। इस पर चलने के लिए बहुत अधिक छल-कपट की आवश्यकता नहीं है। प्रेम पथ पर अग्रसर होने के लिए अत्यधिक सोच-विचार नहीं करना पड़ता और न ही किसी बुद्धि बल की आवश्यकता होती है। इसमें भक्त की भावना प्रधान होती है। प्रेम की भावना से आसानी से ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम में सर्वस्व देने की बात होती है लेने की अपेक्षा लेश मात्र भी नहीं होता। यह मार्ग टेढ़ापन से मुक्त है। प्रेम में प्रेमी बेझिझक निःसंकोच भाव से सरलता से; सहजता से प्रेम करने वाले से एकाकार कर लेता है। इसमें दो मिलकर एक हो जाते हैं। दो भिन्न अस्तित्व नहीं बल्कि एक पहचान स्थापित हो जाती है।
2.’मन लेह पै देह छटाँक नहीं’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर : मन’ माप-तौल की दृष्टि से अधिक वजन का सूचक जबकि ‘छटाँक’ बहुत ही अल्पता का सूचक है। कवि कहते हैं कि प्रेमी में देने की भावना होती है लेने की नहीं। प्रेम में प्रेमी अपने इष्ट को सर्वस्व न्योछावर करके अपने को धन्य मानते हैं। इसमें संपूर्ण समर्पण की भावना उजागर किया गया है। प्रेम में बदले में लेने की आशा बिल्कुल नहीं होती।
10th Hindi Chapter 4 Question & Answer, Bihar Board 10 Hindi Question Answer, 10th Hindi Notes
3.द्वितीय छंद किसे संबोधित हैं और क्यों?
उत्तर : द्वितीय छंद बादल को संबोधित है। इसमें मेघ की अन्योक्ति के माध्यम से विरह-वेदना की अभिव्यक्ति है। मेघं का वर्णन इसलिए किया गया है कि मेघ विरह-वेदना में अश्रुधारा प्रवाहित करने का जीवंत उदाहरण है। प्रेमी अपनी प्रेमाश्रुओं की अविरल धारा के माध्यम से प्रेम प्रकट करता है। इसमें निश्छलता एवं स्वार्थहीनता होता है। बादल भी उदारतावश दूसरे के परोपकार के लिए अमृत रूपी जल वर्षा करता है।
प्रेमी के हृदय रूपी सागर में प्रेम रूपी अथाह जल होता है जिसे इष्ट के निकट पहुँचाने की आवश्यकता है। बादल को कहा जा रहा है कि तुम परोपकारी हो। जिस प्रकार सागर के जल को अपने माध्यम से जीवनदायनी जल के रूप में वर्षा करते हो उसी प्रकार मेरे प्रेमाश्रुओं को भी मेरी इष्ट के लिए, उसके जीवन के लिए प्रेम सुधा रस के रूप में बरसाओ। विरह-वेदना से भरे अपने हृदय की पीड़ा को मेघ के माध्यम से अत्यंत कलात्मक। रूप में अभिव्यक्त किया गया है। Class 10th Hindi Notes
4.परहित के लिए ही देह कौन धारण करता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : परहित के लिए ही देह, बादल धारण करता है। बादल जल की वर्षा करके सभी प्राणियों को जीवन देता है। प्राणियों में सुख-चैन स्थापित करता है। उसकी वर्षा उसके विरह के आँसू के प्रतीक स्वरूप हैं। उसके विरह के आँसू, अमृत की वर्षा कर जीवनदाता हो जाता है। बादल शरीर धारण करके सागर के जल को अमृत बनाकर
दूसरे के लिए एक-एक बूंद समर्पित कर देता है। अपने लिए कुछ भी नहीं रखता। वह सर्वस्व न्योछावर कर देता है। बदले में कुछ। भी नहीं लेता है। निःस्वार्थ भाव से वर्षा करता है। उसका देह केवल परोपकार के लिए निर्मित हुआ है। Class 10th Hindi Chapter 4 Notes
5.कवि कहाँ अपने आसुओं को पहुंचाना चाहता है और क्यों ?
उत्तर : कवि अपने प्रेयसी सुजान के लिए विरह-वेदना को प्रकट करते हुए बादल से अपने प्रेमाश्रुओं को पहुंचाने के लिए कहता है। वह अपने आँसुओं को सुजान के आँगन में पहुंचाना चाहता है। क्योंकि वह उसकी याद में व्यथित है और अपनी व्यथा की आँसुओं से प्रेयसी को भिगो देना चाहता है। वह उसके निकट आँसुओं को पहुंचाकर अपने प्रेम की आस्था को शाश्वत रखना चाहता है।
6.व्याख्या करें:
(क) यहाँ एक ते दूसरी ऑक नहीं
उत्तर : प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य की पाठ्य पुस्तक के कवि घनानंद द्वारा रचित ‘अति सधो सनेह को मारग है” पाठ से उधृत है। इसके माध्यम से कवि प्रेमी और प्रेयसी का एकाकार करते हुए कहते हैं कि प्रेम में दो की पहचान अलग-अलग नहीं रहती, बल्कि दोनों मिलकर एक रूप में स्थित हो जाते हैं। प्रेमी निश्चल भाव से सर्वस्व समर्पण की भावना रखता है और तुलनात्मक अपेक्षा नहीं करता है। मात्र देता है, बदले में कुछ लेने की आशा नहीं करता है। प्रस्तुत पंक्ति में कवि घनानंद अपनी प्रेमिका सुजान को संबोधित करते हैं कि हे सुजान सुनो! – यहाँ अर्थात् मेरे प्रेम में तुम्हारे सिवा कोई दूसरा चिह्न नहीं है। मेरे हृदय में मात्र तुम्हारा ही चित्र अंकित है।
(ख) कछु मेरियो पीर हिएं परसौ
उत्तर : प्रस्तुत पंक्ति हिन्दी साहित्य के पाठ्य-पुस्तक से कवि घनानंद-रचित “मो असवानिहिं लै बरसी” पाठ से उधृत है। प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से कवि परोपकारी बादल से निवेदन किये हैं कि मेरे हृदय की पीड़ा को भी कभी स्पर्श किया जाय और मेरे हार्दिक विरह-वेदना को प्रकट करने वाली आंसुओं को अपने माध्यम से मेरे प्रेयसी सुजान के आँगन तक वर्षा के रूप में पहुंचाया जाय।
प्रस्तुत व्याख्येय पंक्ति में कहते हैं कि हे घन! तुम जीवनदायक हो, परोपकारी हो, दूसरे के हित के लिए देह धारण करने वाले हो। सागर के जल को अमृत में परिवर्तित करके वर्षा के रूप, में कल्याण करते हो। कभी मेरे लिए भी कुछ करो। मेरे लिए इतना जरूर करो कि मेरे हृदय को स्पर्श करो। मेरे दुःख दर्द को समझो, जानो और मेरे ऊपर दया की दृष्टि रखते हुए अपने परोपकारी स्वभाववश मेरे हृदय की व्यथा को अपने माध्यम से सुजान तक पहुँचा दो। मेरे प्रेमाश्रुओं को लेकर। सुजान की आँगन में प्रेम की वर्षा कर दो।