10th Hindi Qestion & Answer

आविन्यों Question Answer

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1.आविन्यों क्या है और वह कहाँ अवस्थित है?

उत्तर : आविन्यों एक स्थान का नाम है। दक्षिण फ्रांस में रोन नदी के किनारे बसा एक पुराना शहर है।

2.बरस आविन्यों में कब और कैसा समारोह हुआ करता है?

उत्तर : गर्मियों में फ्रांस और यूरोप का एक अत्यन्त प्रसिद्ध और लोकप्रिय कप्रिय रंग-समारोह हर बरस होता है।

3.लेखक आविन्यों किस सिलसिले में गए थे? वहाँ उन्होंने क्या देखा-सुना?

उत्तर : पीटर ब्रुके का विवादास्पद ‘महाभारत’ पहले पहल प्रस्तुत किया जाने वाला था। उसी के निमन्त्रण पर लेखक आविन्यों गये थे। । वहाँ उन्होंने देखा कि समारोह के दौरान वहाँ के अनेक चर्च और पुराने स्थान रंगस्थलियों में बदल जाते हैं।

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4.ला शत्रूज क्या है और वह कहाँ अवस्थित है? आजकल उसका क्या उपयोग होता है?

उत्तर : दरअसल फ्रेंच शासकों ने पोप की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए किला बनवाया था। यह आविन्यों में है। उसमें एक कलाकेन्द्र की स्थापना की गई है। यह केन्द्र इन दिनों रंगमंच और लेखन से जुड़ा हुआ है।

5.ला शत्रूज का अंतरंग विवरण अपने शब्दों में प्रस्तुत करते हुए यह स्पष्ट कीजिए कि लेखक ने उसके स्थापत्य को ‘मौन का स्थापत्य’ क्यों कहा है?

उत्तर : ला शत्रूज फ्रेंच शासकों द्वारा निर्मित किला में काथूसियन सम्प्रदाय का एक ईसाई मठ है। उसके भीतरी भाग में ईसाई सन्तों के चैम्बर्स बने हुए हैं। दो-दो कमरों के चैम्बर सुसज्जित हैं। चौदहवीं सदी के फर्नीचर लगे हैं। चैम्बरों के मुख्य द्वार कब्रगाह के चारों ओर बने गलियारों में खुलते हैं। कार्थसियन सम्प्रदाय मौन में विश्वास करता है। उसके द्वारा ला शत्रूज में सारा स्थापत्य मौन का ही स्थापत्य है। अतः लेखक ने इसे ‘मौन का स्थापत्य’ की संज्ञा दी है।

6.लेखक आविन्यों क्या साथ लेकर गए थे और वहाँ कितने दिनों तक रहे? लेखक की उपलब्धि क्या रही?

उत्तर : लेखक आविन्यों अपने साथ हिन्दी का टाइपराइटर, तीन चार पुस्तकें और कुछ संगीत के टेप्स लेकर गए थे और वहाँ वे उन्नीस दिन 24 अक्टूबर से 10 नवम्बर, 1994 की दोपहर तक रहे। कुल उन्नीस दिनों में वहाँ रहकर उन्होंने पैंतीस कविताएँ और सत्ताईस गद्य की रचना की।

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7.’प्रतीक्षा करते हैं पत्थर’ शीर्षक कविता में कवि क्यों और कैसे पत्थर का मानवीकरण करता है?

उत्तर : कवि महोदय का एकान्त वास मौन में विश्वास रखने वाले सम्प्रदाय के स्थान में था। उनके ऊपर भी मौन साधना का प्रभाव हुआ। वे एकाएक मौन रूप से प्रतीक्षा कर रहे पत्थर को ही मानवीकरण कर डाला। आविन्यों Question Answer Pdf Download

8.आविन्यों के प्रति लेखक कैसे अपना सम्मान प्रदर्शित करते हैं?

उत्तर : वे सुन्दर, निविड़, सघन, सुनसान दिन और रातें थीं, भय, पवित्रता और आसक्ति से भरी हुई। यह पुस्तक उन सबकी स्मृति का दस्तावेज है। आविन्यों को उसी के मठ में रहकर लिखी गई, कवि प्रजति भी। जो पाया उसके लिए गहरी कृतज्ञता मन में है।

9.मनुष्य जीवन से पत्थर की क्या समानता और विषमता है ?

उत्तर : मानवीय जीवन में सुख और दुःख के समय व्यतीत होते हैं। जीवन परिवर्तनशील पथ पर अग्रसर होता है। मानव उतार-चढ़ाव देखता है। पत्थर भी मानव की तरह परिवर्तनशील समय का सामना करता है। पत्थर भी शीत और ताप दोनों का सान्निध्य पाता है। मानव अपनी प्राचीन गाथा को गाता है। पत्थर भी प्राचीनता को अपने में सहेजे रखता है। मानव अपनी भावनाओं को प्रकट करता है। अपने अनुभव को व्यक्त करता है। परन्तु पत्थर मूक रहता है। हर स्थिति से गुजरते हुए अभिव्यक्त नहीं करता है। मनुष्य की कविता में शब्द होते हैं लेकिन पत्थर निःशब्द कविता रचता है। मनुष्य झुककर नमन करता है लेकिन पत्थर बिना माथा झुकाए प्रार्थना करता है। इस प्रकार मनुष्य जीवन से पत्थरों की समानता और विषमता दोनों है।

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10.इस कविता से आप क्या सीखते हैं।

उत्तर : इस कविता से हमलोग सीखते हैं कि अपने लक्ष्य के प्रति मौन रहकर कर्म करना। अनेक प्रकार के झंझावातों को सहन करते हुए लक्ष्य को प्राप्त करना। Bihar Board 10th Hindi Summary and Notes

11.नदी के तट पर बैठे हुए लेखक को क्या अनुभव होता है?

उत्तर : नदी के तट पर बैठे हुए लेखक को लगता है कि जल स्थिर है और तट ही बह रहा है। उन्हें अनुभव हो रहा है कि वे नदी के साथ बह रहे हैं। नदी के पास रहने से लगता है कि स्वयं नदी हो गये हैं। स्वयं में नदी की झलक देखते हैं।

12.नदी तट पर लेखक को किसकी याद आती है और क्यों ?

उत्तर : नदी तट पर लेखक को विनोद कुमार शुक्ल की एक कविता याद आती है। क्योंकि लेखक नदी तट पर बैठकर अनुभव करते हैं कि वे स्वयं नदी हो गये हैं। इसी बात की पुष्टि करते हुए शुक्ल जी ने “नदी-चेहरा लोगों से मिलने जाने की बात कहते हैं। उनकी रचना लेखक को प्रासंगिक लगी। अतः लेखक को शुक्ल की कविता याद आती है।

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13.नदी और कविता में लेखक क्या समानता पाता है ?

उत्तर : जिस प्रकार नदी सदियों से हमारे साथ रही है उसी प्रकार कविता भी मानव की जीवन-संगिनी रही है। नदी में विभिन्न जगहों से जल आकर मिलते हैं और वह प्रवाहित होकर सागर में समाहित होते रहते हैं। हर दिन सागर में समाहित होने के बावजूद उसमें जल का टोटा नहीं पड़ता। कविता में भी विभिन्न विडम्बनाएँ, शब्द भंगिमाओं, जीवन छवियाँ और प्रतीतियाँ आकर मिलती हैं और तदाकार होती रहती हैं। जैसे नदी जल-रिक्त नहीं होती, वैसे ही कविता शब्द-रिक्त नहीं होती। इस प्रकार नदी और कविता में लेखक अनेक समानता पाता है।

14.किसके पास तटस्थ रह पाना संभव नहीं हो पाता और क्यों?

उत्तर : नदी और कविता के पास रहकर तटस्थ रह पाना संभव नहीं है। नदी किसी को अनदेखा नहीं करती वह सबको भिगोती है, अपने साथ करती है। कविता में भी न जाने कहाँ से कैसी-कैसी बिम्बमालाएँ शब्द भंगिमाएँ, जीवन छवियाँ और प्रतीतियाँ आकर मिलती और तदाकार होती रहती हैं। । हम इसकी अभिभूति से बच नहीं सकते।

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